हैदराबाद: तेलंगाना के महबूबनगर जिले के बाओजी थांडा गांव का ICAR-डायरेक्टरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च, हैदराबाद के निदेशक सहित दर्जनभऱ से अधिक वैज्ञानिकों ने दौरा किया। इस मौके पर “बैकयार्ड पोल्ट्री के साथ एकीकृत मोरिंगा खेती” पर फील्ड डिमॉन्स्ट्रेशन यूनिट का डीपीआर के निदेशक डॉ आर एन चटर्जी ने उद्घाटन किया। ICAR-डायरेक्टरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च, हैदराबाद के वैज्ञानिकों के गहनतम शोध और अथक परिश्रम के बाद मोरिंगा और कुक्कुट पालन की एकीकृत व्यवस्था का बड़ा फायदा देखने को मिला है।

डीपीआर के वैज्ञानिकों ने कुक्कुट पालन की इस एकीकृत व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए तेलंगाना के महबूबनगर जिले के बाओजी थांडा गांव को चुना। जहां के प्रगतिशील किसान रवि ने इस तरह की खेती के लिए हामी भरी और अपनी 0.25 एकड़ जमीन को उपयोग में लाया। डीपीआर के वैज्ञानिकों और कुक्कुट पालक के संयुक्त प्रयासों से गांव में “बैकयार्ड पोल्ट्री के साथ एकीकृत मोरिंगा खेती” पर एक फील्ड प्रदर्शन इकाई सफलतापूर्वक स्थापित की गई। वास्तव में ये यूनिट बाकी किसानों के लिए रोल मॉडल साबित हो सकती है। जो किसान कुक्कुट पालन में बढ़ती लागत को कम करना चाहते हैं वे इस तरह की व्यवस्था को अपना सकते हैं। साथ ही बाओजी थांडा गांव पहुंचकर पूरी व्यवस्था का मुआयना करते हुए व्यावहारिक दिक्कतों और उन्हें दूर करने के तरीकों की जानकारी ले सकते हैं।

मोरिंगा के फूल-पत्तियों के सेवन से कुक्कुटों के मृत्युदर में कमी

Poultary

कार्यक्रम को डीपीआर के निदेशक डॉ आर एन चटर्जी के अलावा अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों और स्थानीय प्रगतिशील ग्रामीणों ने संबोधित किया। बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को बताया गया कि किस तरह वे कुक्कुट पालन की लागत को मोरिंगा की एकीकृत खेती के साथ कम कर सकते हैं। साथ ही इस तरह की एकीकृत खेती में मुर्गियों की मृत्युदर काफी कम देखी गई है। इतना ही नहीं मोरिंगा के पोषण से यहां पलने वाले कुक्कुटों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बाकी फार्म की तुलना में कहीं अधिक होती है। जिससे स्वस्थ और उन्नत किस्म के अंडों की प्राप्ति होती है जिसका बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। आर्थिक पहलू पर रौशनी डालते हुए वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों को मोरिंगा व कुक्कुटों की बैकयार्ड एकीकृत खेती के लिए प्रोत्साहित किया।

पौष्टिक गुणों से भरपूर है मोरिंगा

बता दें कि मोरिंगा या फिर सहजन कई पौष्टिक गुणों से भरपूर वनस्पति है। इसके फल जहां गुणवत्तापूर्ण पोषक का काम करते हैं और इसकी सब्जियां खाई जाती है। वहीं इसकी पत्तियों और फूलों में भी लाभकारी गुण देखे गए हैं। मोरिंगा न सिर्फ इंसानों बल्कि कुक्कुटों के लिए बेहतर पोषण साबित हो सकता है। इस एकीकृत व्यवस्था में दो मेड़ों के बीच 1.3 फीट और दो पौधों के बीच 0,7 फीट की दूरी पर मोरिंगा के पौधों को लगाया जाता है। बाड़े में बाहरी पशु कुक्कुटों को नुकसान न पहुंचाएं इसलिए इसे चेन लिंक या तार से पूरी तरह घेर दिया जाता है, जिसकी ऊंचाई अमूमन दस फीट तक रखने की सलाह दी जाती है। बाड़े के साथ ही कुक्कुटों के लिए नाइट शेल्टर की व्यवस्था की जाती है। नाइट शेल्टर में हरेक पक्षी के लिए 1.8 से 2 वर्गफुट की दूरी सुनिश्चि की जाती है।

कुक्कुटों के आहार की लागत होती है कम

मोरिंगा के बाड़े में रह रहे कुक्कुटों को चारा के अलावा सूखी मोरिंगा की पत्तियाँ भोजन के तौर पर प्रदान की जाती है। इस आहार व्यवस्था से बैकयार्ड पोल्ट्री के माहौल में पक्षियों के जीवित रहने की क्षमता में गुणात्मक सुधार देखने को मिलता है। अपने संबोधन के दौरान निदेशक डॉ. आर.एन. चटर्जी ने कृषि भूमि प्रबंधन के बेहतर इस्तेमाल के साथ एकीकृत खेती के लाभों पर जोर दिया। मोरिंगा की पत्तियों और फूल व अन्य अवयवों से पक्षियों को उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन आहार (22-24% सीपी) मिलता है, जिससे चिकन उत्पादन की लागत में काफी कमी आती है। कुक्कुट पालन की यह व्यवस्था व्यावहारिक होने के साथ ही किसान भाईयों के लिए अत्यंत लाभकारी भी है। कार्यक्रम में निदेशालय के वैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मचारियों के साथ-साथ गांव के किसानों का उत्साह देखते बन रहा था। कार्यक्रम का संचालन डॉ. आर.के. महापात्रा, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. बी. प्रकाश, प्रधान वैज्ञानिक और निदेशालय के मुख्य तकनीकी अधिकारी डॉ. एस. के. भांजा ने किया।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने मोरिंगा- कुक्कुट एकीकृत खेती के लिए किया प्रोत्साहित

इससे पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने डीपीआर हैदराबाद का दौरा किया था। उन्होंने संस्थान के निदेशक डॉ आर एन चटर्जी को मोरिंगा और कुक्कुटों की एकीकृत बैकयार्ड फार्मिंग पर शोध का सुझाव दिया। जिसके तत्काल बाद डीपीआर में मोरिंगा रोपण के साथ इस तरह की एकीकृत व्यवस्था का मॉडल तैयार कर गहन शोध किया गया। जिसके नतीजे बेहद सकारात्मक देखने को मिले। इसके बाद डीपीआर का प्रयास है कि इस तरह की एकीकृत बैकयार्ड कुक्कुट व्यवस्था का लोकप्रिय बनाया जाय। ताकि ग्रामीण इलाकों में किसानों की आय में इजाफा हो सके।

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