हैदराबाद: मुर्गी पालन का व्यवसाय उद्यमियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। अगर आप कुक्कुट पालन के व्यवसाय में हैं, या इसे अपनाना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। हैदराबाद स्थित डायरेक्ट्रेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च (Directorate of Poultry Research) के वैज्ञानिकों ने देसी नस्ल की मुर्गियों से कुछ उन्नत नस्ल की कुक्कुट किस्में विकसित की हैं। जिसका बाजार भाव भी अच्छा है। साथ ही इसके अंडे और मांस आम तौर पर मिलने वाले ब्रॉयलर मीट और अंडों की तुलना में कहीं अधिक पौष्टिकता से भरे होते हैं। ये नस्लें हैं वनराजा, ग्रामप्रिया श्रीनिधि, कृषिब्रो और कृषिलेयर आदि।

जानते हैं संकर नस्ल की ऐसी ही विकसित कुक्कुट प्रजातियों और उनके फायदे के बारे में। कुक्कुट उत्पादन में विभिन्न नस्लों, इसके विकास, आर्थिक और वाणिज्यिक पहलुओं, जारी अनुसंधान आदि के बारे में शायह ही भली भांति हम परिचित हों। ICAR-DPR, हैदराबाद के संयोजन में एआईसीआरपी के तहत शोधरत वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों ने कुक्कुटों के वृहत और उत्पादक नस्लों के संवर्धन और विकास में भारत को अग्रणी बनाया है। आइए इसके बारे में और अधिक जानते हैं।

अपनी स्थापनाकाल से ही, आईसीएआर-डीपीआर कुक्कुट प्रजनन पर अखिल भारतीय समन्वित परियोजना की निगरानी करता रहा है, जिस पर विभिन्न कृषि / पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों और आईसीएआर संस्थानों में स्थित कुल 12 केंद्रों में शोध जारी है। परियोजना का मुख्य उद्देश्य स्थान विशेष कुक्कुट प्रजातियों का विकास, संरक्षण और संवर्धन करना है। नई ब्रीड विकसित करने की प्रक्रिया में स्थानीय देसी, विदेशी और ब्रायलर जर्मप्लाज्म का इस्तेमाल किया जाता है। परिणामस्वरूम  ग्रामीण कुक्कुट पालन की उद्यमिता और आमदनी में इजाफा हुआ है। अलग-अलग लक्षणों वाली मूल प्रजातियों के गुणों को बनाए रखते हुए, नर और मादा क्रास के जरिये हाइब्रिड या उन्नत  हेटेरोसिस प्राप्त किया गया। इस परियोजना में स्थान विशेष किस्मों के प्रजनन में उसी इलाके के देशी जर्म प्लाज्म का उपयोग किया गया। इस प्रक्रिया में, कई कुक्कुट किस्मों जैसे वनराज, ग्रामप्रिय, श्रीनिधि, कृषिब्रो, कृषिलेयर, श्वेतश्री और वनश्री को विकसित और लोकप्रिय बनाया गया।

Poultary

वनराजा प्रजाति के कुक्कुटों की बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता
वनराजा, ये एक दोहरे इस्तेमाल वाली कुक्कुट किस्म है, उच्च रोग प्रतिरक्षा क्षमता के साथ ये दिखने में बेहद आकर्षक होते हैं। वनराजा मुर्गियां सालाना लगभग 120 अंडे देती हैं और 6 महीने की उम्र में मुर्गे का वजन लगभग 2.0-2.5 किलोग्राम होता है। यह किस्म पूरे भारत में पालन के लिए अनुकूल है।

अधिक अंडे देने वाली प्रजाति है ग्रामप्रिया
ग्रामप्रिया ये खासकर अंडे देने वाली किस्म है जिनमें सालाना लगभग 180 अंडे देने की क्षमता होती है, शरीर का वजन मध्यम होता है जिससे खतरे के समय ये तेज भाग पाती हैं। 6 महीने की उम्र में 1.5-2.0 किलोग्राम वजन वाले नर ग्रामप्रिया तंदूरी प्रकार के व्यंजनों के लिए उपयुक्त होते हैं।

बहुरंगी और आकर्षक होती है श्रीनिधि प्रजाति की मुर्गियां
श्रीनिधि, वनराजा और ग्रामप्रिया के मध्यवर्ती गुणों वाला बहुरंगी पक्षी है। ये मुर्गियां सालाना लगभग 140-150 अंडे देती हैं, जबकि मुर्गों का वजन 6 महीने की उम्र में करीब 2.0 किलोग्राम हो जाता है। ये पक्षी 40 सप्ताह की उम्र में 52-55 ग्राम वजन वाले भूरे रंग के अंडे देते हैं।

कठोर मांस वाली चिकन प्रजाति है कृषिब्रो
कृशिब्रो एक बहुरंगी और कठोर मांस वाली चिकन किस्म है, जिसे इंटेन्सिव और सेमी इंटेसिव कुक्कुट पालन के लिए विकसित किया गया है। 6 सप्ताह की उम्र में इन पक्षियों का वजन लगभग 1.5 किलोग्राम होता है। बाजार में इन पक्षियों की अच्छी कीमत मिलती है।

व्यायसायिक फायदे के लिए कृषिलेयर का पालन मुफीद
कृषिलेयर कुक्कुट प्रजनन निदेशालय और एआईसीआरपी के अन्य केंद्रों में विकसित कुलीन सफेद लेघोर्न जर्म प्लाज़्म की मदद से विकसित किया गया है। व्यावसायिक स्तर पर इंटेंसिव टाइप कुक्कुट पालन के लिए ये सबसे उपयुक्त है। कृशिलेयर कठोर जलवायु परिस्थितियों में सालाना 280-300 अंडे देती है।

एआईसीआरपी के विभिन्न केंद्रों में विकसित कुछ स्थान विशिष्ट अन्य ग्रामीण कुक्कुट किस्मों के बारे में बताते हैं। ये हैं प्रतापधन, झारसिम, हिमसमृद्धि, कामरूपा, अतुल्य, नर्मदानिधि।उच्च मांग के कारण इन मुर्गियों के मांस और अंडे पारंपरिक प्रजाति की तुलना में अधिक दाम पर बेचे जाते हैं। हम पोल्ट्री प्रजनन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित कुछ और विशिष्ट कुक्कुट किस्मों के बारे में बताते हैं।  आईसीएआर डीपीआर घरेलू कुक्कुट पोषण, आय और रोजगार सृजन के लिए कुक्कुट की विकसित प्रजाति बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका मिशन व्यापक तौर पर उन्नत उत्पादकता वाले कुक्कुट प्रजातियों को लोकप्रिय बनाना है। ताकि कुक्कुट किसानों की आय और बेहतर हो सके।

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