हैदराबाद: महज 19 साल की योगिता सुराना मशहूर चित्तौड़ ज्वेलर्स परिवार से आती हैं। पढ़ी लिखी योगिता के जीवन में सांसारिक सुख सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। फिर भी उन्होंने जैन साध्वी बनने का फैसला किया है। जिसकी राह बेहद कठिन मानी जाती है। 12 जनवरी को समारोहपूर्वक योगिता जैन साध्वी के तौर पर दीक्षा ग्रहण करेंगी। इस दौरान उनका मुंडन कराया जाएगा। नया नामकरण होगा और उन्हें पहनने के लिए साध्वी वेश के कपड़े दिये जाएंगे। पूरे जैन समाज के लिए ये काफी अहम मौका होता है। साध्वी बनने की इस परंपरा में समाज की हामी होती है।

प्रतीकात्मक फोटो

ऐसे बदल जाएगी योगिता सुराना की जिंदगी
योगिता सामान्य जीवन में चाहे जो पहने खाये उसकी कोई परवाह नहीं करता। वहीं साध्वी की दीक्षा ग्रहण करने के बाद योगिता का जीवन पूरी तरह से परिवर्तित हो जाएगा। उसे आरामदायक जीवन छोड़ना होगा। भले परिवार आर्थिक रूप से संपन्न हो और योगिता की जरूरतों का अब तक पूरा खयाल रखा गया हो, लेकिन साध्वी बनने के बाद योगिता पंखे के नीचे भी नहीं बैठ सकती। उसका परिधान सफेद साड़ी ही होगा। यहां तक कि बिजली, साबुन, टूथब्रश जैसी जीचें भी योगिता के लिए अब वर्जित हो जाएंगी। योगिता ताउम्र अब सामान्य तौर पर स्नान नहीं कर सकेंगी। ऐसी मान्यता है कि जैन साध्वियों के लिए हिंसा पूरी तरह वर्जित है, लिहाजा भूल से भी नहाने के दौरान शरीर पर लगे सूक्ष्म परजीवियों को भी कुछ नुकसान न पहुंचे। लिहाजा जैन साधु और साध्वी को महज स्पंज स्नान लेने की ही अनुमति है।

पढ़ी लिखी योगिता ने क्यों लिया ये फैसला
योगिता सुराना ग्रैजुएट हैं। परिवार में धन दौलत की कोई कमी नहीं। फिर आध्यात्म की राह में सबकुछ त्याग देना कहां कि समझदारी है। किसी के मन में भी ये सवाल आ सकता है। दरअसल जैन समाज में योगिता अकेली नहीं हैं। बल्कि कई कम उम्र की लड़कियों ने बिना दबाव खुद से जैन साध्वी बनने का फैसला किया। जिसमें उनके परिवार से भी सहमति मिली। योगिता सुराना का बचपन से ही आध्यात्म के प्रति रुझान रहा है। आज जब पूरी दुनिया सांसारिक सुख सुविधा के पीछे भाग रही है। ऐसे में योगिता का फैसला हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या वाकई मन की शांति धन दौलत से कहीं बड़ी है।

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योगिता का ऐसे होगा काया क्लेश
जैन समाज में अगर कोई साध्वी बनने का फैसला लेता है या लेती है तो उनका काया क्लेश कराया जाता है। उनका मुंडन करा दिया जाता है भले वो लड़की या महिला ही क्यों न हों। क्योंकि साध्वियों के लिए ब्लेड या फिर चाकू का इस्तेमाल वर्जित है लिहाजा उनका मुंडन करने का तरीका भी अलग होता है। योगिता को काया क्लेश के बाद नया नाम मिल जाएगा। उनका परिवार अब पूरा विश्व होगा। योगिता की अलग पहचान होगी और परिवार में उनका व्यक्तिगत दखल नहीं होगा। योगिता सुराना अब साध्वियों की टोली के साथ रहेंगी और उनका ज्यादातर समय ध्यान में व्यतीत होगा।

भिक्षुणी बनने वाली अकेली नहीं योगिता सुराना
संपन्न परिवार से आने वाली योगिता सुराना जैसी कई युवा लड़कियां हैं जिन्होंने कम उम्र में साध्वी बनने का फैसला किया। बीते साल नीमच की रहने वाली महज 21 साल की तमन्ना मीणा ने जैन साध्वी के तौर पर दीक्षा ग्रहण की थी। तमन्ना के परिवार को बेटी के फैसले से दुख तो जरूर हुआ। लेकिन बड़े बुजुर्गों ने फैसले का ये कहते हुए विरोध नहीं किया कि वे धर्म के आड़े नहीं आ सकते हैं। तमन्ना पढ़ाई में बेहद होशियार रहीं, चाहती तो अच्छी नौकरी पाकर जीवन आराम से बसर कर सकती थीं। फिर भी उन्होंने वैराग्य का मार्ग चुना।

-विजय कुमार

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