सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने नागरिकता कानून की धारा 6 ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, जिनमें से जस्टिस जेबी पारदीवाला ने धारा 6 ए को असंवैधानिक माना। गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘असम अकॉर्ड’ अवैध प्रवासियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था, जबकि धारा 6ए एक विधायी समाधान था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले राज्यों में से असम को अलग तरह से देखना सही था, क्योंकि यहां की स्थानीय आबादी में प्रवासियों का प्रतिशत अधिक है।
सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता देने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के संबंध में कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समुहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29 (1) का उल्लंघन नहीं है। पीठ ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
नागरिकता कानून की धारा 6A क्या है?
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने 1979 में असम से अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। करीब 6 साल चले इस प्रोटेस्ट के बाद 1985 में एक समझौता हुआ जिसे ‘असम अकॉर्ड’ कहा जाता है। ये समझौता केंद्र सरकार, असम सरकार और प्रोटेस्ट कर रहे लोगों के बीच हुआ।
असम अकॉर्ड के क्लॉज 5 के मुताबिक जो भी विदेशी 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम आए होंगे, उनकी पहचान की जाएगी। वहीं 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान करने की प्रक्रिया जारी रहेगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा।
असम अकॉर्ड के बाद ‘1955 के नागरिकता कानून’ में संशोधन कर धारा 6ए जोड़ी गई। धारा 6ए के मुताबिक 1 जनवरी 1966 से पहले बांग्लादेश से आए भारतीय मूल के व्यक्तियों को ही भारतीय नागरिक माना जाएगा। वहीं जो लोग 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच आए होंगे, उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा और कम से कम 10 साल असम में रहने के बाद भारतीय नागरिकता मांग सकेंगे। हालांकि इस दौरान उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं होगा। जबकि 25 मार्च 1971 के बाद आए लोगों की पहचान की जाएगी और उन्हें कानूनी रूप से वापस भेजा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में क्यों गया था मामला?
‘असम संमिलिता महासंघ’ नाम की सिविल सोसायटी ग्रुप ने 2012 में धारा 6ए को भेदभावपूर्ण और गैरकानूनी बताते हुए विरोध किया था। ग्रुप ने इसकी संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि अवैध प्रवासियों को नियमति करने लिए अलग-अलग कट-ऑफ डेट का प्रावधान करना सही नहीं था।
Shashi Rai