भारत और चीन के बीच LAC पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हो गया है। सोमवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया कि पिछले कुछ हफ्तों में भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई वार्ताएं हुई हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच LAC पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हुआ है। इसके साथ ही 2020 में हुए सीमा तनाव को जल्द सुलझाने को लेकर संकल्प भी पारित किया गया है।
बता दें, इसी साल अप्रैल के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी मैगजीन ‘न्यूजवीक’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि दोनों देशों को तत्काल सीमा विवाद सुलझा लेना चाहिए, ताकि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय चर्चा में मुश्किल स्थिति को पीछे छोड़ा जा सके। साथ ही उन्होंने कहा था कि स्थायी और शांतिपूर्ण रिश्ते न सिर्फ दोनों मुल्कों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए जरूरी है।
भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा
दरअसल, भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है। ये सीमा कुल तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है। ईस्टर्न में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की सीमा चीन से लगती है, जिसकी लंबाई 1,346 किमी है। मिडिल सेक्टर में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड है, जो 545 किमी लंबी है। वहीं वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख है, जो चीन के साथ 1,597 किमी लंबी सीमा साझा करता है।
इन इलाकों में है विवाद
भारत और चीन के बीच कई इलाकों को लेकर सीमा विवाद है। लद्दाख में करीब 38 हजार वर्ग किमी जमीन पर चीन का कब्जा है, जिसे अक्साई चीन कहते हैं। इसके अलावा चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किमी जमीन पर दावा करता है। बता दें, 2 मार्च 1963 को चीन और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था, इसके तहत पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी।
जानें क्यों है सीमा विवाद
दरअसल, 1865 में ब्रिटिश सर्वेयर ‘डब्ल्यू एच जॉनसन’ ने भारत और तिब्बत के बीच एक सीमा रेखा खींची। फिर 1893 में एक नई बॉर्डर लाइन खींची गई जिसे ‘मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन’ कहा जाता है, इसमें अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा चीनी क्षेत्र में दिखाया गया। इसके बाद एक बार फिर 1897 में जॉनसन-आर्डाघ लाइन खींची गई। इसमें अक्साई चीन को भारत का हिस्सा बताया गया।
भारत जब 1947 में आज़ाद हुआ तो उसने 1897 में खींची गई जॉनसन-आर्डाघ लाइन को सीमा माना।
मैकमोहन लाइन
भारत के आज़ाद होने से पहले 1914 में शिमला में एक समझौता हुआ था। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची। इसे ‘मैकमोहन लाइन’ कहा जाता है। इसके मुताबिक अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था। आज़ादी के बाद भारत ने ‘मैकमोहन लाइन’ को माना। लेकिन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। चीन ने दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। और चूंकि तिब्बत पर कब्जा है इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ।
दरअसल, चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता। वो दावा करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था।
7 नवंबर 1959 को लिखे पत्र का चीन करता है जिक्र
भारत और चीन के बीच जब भी सीमा विवाद को लेकर जिक्र होता है, तो चीन 7 नवंबर 1959 की तारीख को लिखे एक पत्र की बात उठाने लगता है। दरअसल, 7 नवंबर 1959 को चीन के तब के प्रधानमंत्री झाउ एन-लाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक लेटर लिखा था। ये लेटर उस समय लिखा गया था जब चीनी सैनिक कई किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुस गए थे। उस खत में झाऊ एन-लाई ने लिखा था कि दोनों देशों की सेनाएं जहां हैं उसे ही LAC माना जाए और वहां शांति बनाए रखने के लिए 20-20 किलोमीटर पीछे हट जाएं। हालांकि झाउ एन-लाई के इस प्रस्ताव को नेहरू जी ने खारिज कर दिया था।
चीन जबरन सीमा की परिभाषा ना दे
साल 2020 में भी जब गलवान घाटी में झड़प हुई थी तब भी चीन ने इसी बात को दोहराया था, लेकिन भारत ने साफ शब्दों में कह दिया था कि चीन जबरन सीमा की परिभाषा ना दे, भारत ने ये भी कहा था कि 1993 के समझौते में तय हो चुका है कि एलएसी के जिन इलाकों को लेकर विवाद है, उसे बातचीत से सुलझाया जाएगा।
Shashi Rai