नवंबर महीने में थोक महंगाई दर घटकर 1.89% पर पहुंच गई है, जबकि अक्टूबर में यह 2.36% थी। सितंबर में यह 1.84% रही थी। इस गिरावट का मुख्य कारण सब्जियों और खाने-पीने की चीजों की कीमतों में कमी है।
खाने-पीने की वस्तुएं और प्राथमिक सामग्री की कीमतों में कमी आई है।
रोजमर्रा की जरूरतों वाले सामानों की महंगाई दर 8.09% से घटकर 5.49% हो गई।
खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई 11.59% से घटकर 8.92% पर आ गई।
ईंधन और ऊर्जा की थोक महंगाई दर -5.79% से घटकर -5.83% हो गई।
विनिर्माण उत्पादों की थोक महंगाई दर 1.50% से बढ़कर 2.00% रही।
थोक महंगाई का असर
थोक महंगाई का लंबे समय तक उच्च रहना उत्पादक सेक्टर पर बुरा असर डालता है। जब थोक मूल्य बढ़ता है, तो निर्माता इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) को नियंत्रित कर सकती है, जैसे कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि पर सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी घटाई। हालांकि, टैक्स में कटौती एक सीमा तक ही संभव है।
महंगाई मापने का तरीका
भारत में दो प्रकार की महंगाई होती है: रिटेल महंगाई (CPI) और थोक महंगाई (WPI)। रिटेल महंगाई ग्राहकों द्वारा दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है, जबकि WPI थोक बाजार में कारोबारी कीमतों को दर्शाता है। WPI में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, जबकि रिटेल महंगाई में खाद्य और उत्पादों का बड़ा योगदान है।