दरअसल, ‘टैरिफ पसंद’ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, US का किंग बनते ही अपने पड़ोसी देशों कनाडा और मैक्सिको पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगा चुके हैं। आसान शब्दों में कहें तो अब कनाडा और मैक्सिको को अमेरिका में अपना सामान बेचने के लिए 25 प्रतिशत शुल्क यानी टैक्स देना होगा। इसके साथ ही चीन पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने पर विचार चल रहा है, तो वहीं BRICS देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी है।
आखिरकार ट्रम्प ब्रिक्स देशों को बार-बार टैरिफ लगाने की धमकी क्यों दे रहे हैं। क्या वह ब्रिक्स देशों से खुद डरे हुए हैं? तो इसका जवाब है हां,- दरअसल ब्रिक्स देशों की नई करेंसी प्लानिंग से अमेरिका डरा हुआ है। क्योंकि दुनिया का 80% व्यापार और 58% पेमेंट डॉलर में होता है। इसके साथ ही दुनिया का 64% लोन और 59% फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व डॉलर में होता है। इसके जरिए अमेरिका को काफी फायदा होता है। क्योंकि दुनियाभर के देशों को आपस में व्यापार करने के लिए अमेरिका के इंटरनेशनल पेमेंट SWIFT नेटवर्क का इस्तेमाल करना पड़ता है।
दरअसल, रूस के यूक्रेन पर किए गए हमले के बाद, अमेरिका सहित कई दूसरे देशों ने भी रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए । इनमें इंटरनेशनल पेमेंट स्विफ्ट भी शामिल था। इसके बाद से दुनिया भर के देश अमेरिकी डॉलर और ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम पर से निर्भरता कम करने पर विचार करने लगे।
जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही। इसके बाद जोहान्सबर्ग में 2023 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्राज़ील के राष्ट्रपति इनासियो लूला दा सिल्वा ने कहा कि ”एक नई करेंसी हमारे पेमेंट ऑप्शंस में इजाफा करेगा और उनकी कमजोरियों के साथ परेशानियों को भी कम करेगा।
वहीं पिछले साल यानी 2024 में रूस के कजान शहर में 22 से 24 अक्टूबर तक ब्रिक्स की 16वीं समिट हुई। इस समिट का अहम एजेंडा डी-डॉलराइजेशन और न्यू पेमेंट सिस्टम था। इस समिट में एक बार फिर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि डॉलर का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया जा रहा है। वहीं समिट में शामिल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि भारत ब्रिक्स देशों के बीच वित्तीय एकीकरण यानी Financial Integration, बढ़ाने के प्रयासों का स्वागत करता है। ब्रिक्स समिट में हुई इस तरह की चर्चा के बाद अमेरिका परेशान है, ट्रम्प का कहना है कि अगर ब्रिक्स देश डॉलर को कमजोर करने के लिए अपनी अलग करेंसी बनाते हैं तो उनपर अमेरिका 100 फीसदी टैरिफ लगाएगा।
आपको बता दें, साल 2009 में बना ब्रिक्स एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय समूह है जिसमें अमेरिका शामिल नहीं है। इसके सदस्य देशों में भारत, रूस, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
इस बीच एक सवाल है कि क्या टैरिफ लगाने से अमेरिका को फायदा ही फायदा होगा, जिसका जवाब है नहीं, क्योंकि
यह सच है कि जिन देशों पर टैरिफ ट्रम्प लगाएंगे, उन देशों को अमेरिका के साथ व्यापार करने में आसानी नहीं होगी, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अमेरिका को बस इसका फायदा ही होगा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रम्प के इस फैसले से अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है। क्योंकि अमेरिका में ज्यादातर दवाएं, बीयर और अन्य घरेलू समान, कनाडा, मेक्सिको और ब्रिक्स देशों से ही आते हैं। ट्रम्प भले ही ये बोलें कि टैरिफ से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार बढ़ेंगे, लेकिन इससे रिटेल कंपनियों की लागत भी बढे़गी।
RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम 2025 में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ”मुझे लगता है ट्रंप की टैरिफ बढ़ाने की धमकी अस्थिरता और दुनिया के लिए बाधाएं डालने का एक बड़ा सोर्स है। मुझे नहीं लगता अमेरिका के लिए यह उतना फायदेमंद होगा जितना ट्रम्प प्रशासन समझता है।” पूर्व गवर्नर ने कहा कि अगर यूनिवर्सल टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो वे अन्य देशों से आयात को रोक सकते हैं, लेकिन इससे अमेरिका में बहुत अधिक लागत पर उत्पादन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
Shashi Rai